बाल
केन्द्रित शिक्षण
सी.सी.ई.
(सतत एवम व्यापक मूल्यांकन)
परिचय
केंद्रीय
माध्यमिक शिक्षा मंडल सतत और व्यापक
मूल्यांकन (सीसीई) की योजना के में
अपनी परीक्षा सुधार कार्यक्रम के एक भाग
के रूप में लाया गया है. तरह की एक
योजना शिक्षा पर कई राष्ट्रीय आयोग
द्वारा अतीत में और स्कूलों में इसके
कार्यान्वयन की सिफारिश की थी और लंबे
समय से अपेक्षित किया गया है.
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क 2005 और
2006 की एनसीईआरटी द्वारा परीक्षा सुधार पर स्थिति कागज
की सिफारिश की है कि स्कूल आधारित आकलन बाह्य परीक्षाओं की जगह
चाहिएl सतत और स्कूल आधारित आकलन के एक भाग के रूप में मूल्यांकन
(सीसीई) एक शिक्षा के वांछित उद्देश्यों में से एक हो जाता हैl
(सत्र 2015-2016)
जिस विषय से सम्बंधित विषयवस्तु डाउनलोड करनी है उस पर क्लिक
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- पाठ्यक्रम एवं टर्मवार अधिगम उददेश्य
(कक्षा 1 -5)
(कक्षा 3 -5)
- अध्यापक योजना डायरी प्रारूप-
(कक्षा 1 -2)
(कक्षा 3 -5)
- आधार-रेखा आकलन (Base-Line Assessments)-
कक्षा
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विषय
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प्रारूप (Samples)
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कक्षा 2
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हिन्दी
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प्रारूप 2
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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अंग्रेज़ी
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प्रारूप 1
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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गणित
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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कक्षा 3
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हिन्दी
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प्रारूप 1
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प्रारूप 2
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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अंग्रेज़ी
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प्रारूप 1
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प्रारूप 2
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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गणित
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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कक्षा 4
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हिन्दी
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प्रारूप 1
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प्रारूप 2
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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अंग्रेज़ी
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प्रारूप 1
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प्रारूप 2
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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गणित
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प्रारूप 4
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कक्षा 5
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हिन्दी
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प्रारूप 1
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अंग्रेज़ी
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प्रारूप 2
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गणित
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प्रारूप 2
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प्रारूप 3
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प्रारूप 4
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प्रारूप 5
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(नोट: कक्षा 1 एवं पर्यावरण अध्ययन विषय का कक्षा स्तर विद्यार्थी की
नामांकित कक्षा ही होता है अत: इनका आधार-रेखा आकलन नहीं होता है )
- अध्यापक योजना डायरी की शिक्षण-आकलन योजनाए (Lesson Plans)-
Class
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Subject
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Term
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शिक्षण-आकलन योजनाए (Lesson Plans)
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Hindi
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English
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4
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- योगात्मक आकलन- (Summative Assessments)-
(कक्षा 1) हिन्दी अंग्रेजी गणित
(कक्षा 2) हिन्दी अंग्रेजी गणित
(कक्षा 3) हिन्दी अंग्रेजी गणित
पर्यावरण अध्ययन
(कक्षा 4) हिन्दी अंग्रेजी गणित
पर्यावरण अध्ययन
(कक्षा 5) हिन्दी अंग्रेजी गणित
पर्यावरण अध्ययन
- पाठ्यक्रम आधारित अधिगम उददेश्यो की टर्म विभाजन प्रक्रिया-
- सी.सी.ई. बाल गीत-
- सी.सी.ई. चेतना गीत-
- सी.सी.ई.-प्रक्रिया एक चक्र के रूप में-
सभी शिक्षक महानुभावों से नम्र निवेदन है की आप CCE से सम्बन्धित सुझाव एवं सहायक सामग्री निम्न प्रकार भेज सकते है -
E Mail-
rajasthanshikshak@gmail.com,
skolasikar@gmail.
com
Whats App
/ Hike Group- www.rajshikshak.com
Whats App
/ Hike Number- 9314051039
Website-
www.rajshikshak.com
सतत और व्यापक मूल्यांकन एक नौसिखिया के समग्र मूल्यांकन के साथ
संबंध है.
मन में परीक्षा सुधारों के व्यापक उद्देश्य के साथ, सीसीई की परिकल्पना की गई है कि हर शिक्षार्थी है सीखने अनुसूची की पूरी
अवधि के बजाय एक शॉट सीखने का एक कोर्स के अंत में तीन घंटे बाह्य
परीक्षा पर मूल्यांकन करने के लिए. इसके अलावा मूल्यांकन की प्रक्रिया भी
शामिल है और एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के सभी घटकों को प्रतिबिंबित करना
चाहिए.
सीसीई की योजना न केवल सीखने और शैक्षिक क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ाने के लिए वांछित अतिरिक्त आदानों के क्षेत्रों
के अधिग्रहण के स्तर के बारे में आवश्यक प्रतिक्रिया प्रदान करता है, यह भी आवश्यक जीवन कौशल, दृष्टिकोण और मूल्यों के शिक्षार्थियों के अधिग्रहण में
प्रवीणता पर बराबर जोर देता है,
और हितों आउटडोर खेल और खेल सहित सह
पाठयक्रम गतिविधियों में उपलब्धि है.
रूपवादी डोमेन वांछित प्राप्ति के स्तर के साथ साथ आवश्यक व्यक्तित्व गुण और अन्य सह शैक्षिक क्षेत्रों के विकास पर जोर
निश्चित रूप से युवा शिक्षार्थियों बेहतर मनुष्य में बढ़ने में मदद मिलेगी
और उन्हें सार्थक सामाजिक आवश्यकताओं और राष्ट्रीय उम्मीदों की दिशा में
योगदान करने के लिए सक्षम हो जाएगा. दोनों के सिर और दिल एक व्यक्ति की एक
समग्र विकास है.
'सतत' और 'व्यापक मूल्यांकन' क्या है?
सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई)
विद्यालय के छात्रों के आधार पर मूल्यांकन है कि छात्रों के विकास के सभी पहलुओं को
शामिल किया गया है की एक प्रणाली को दर्शाता है.
छात्रों के विकास और विकास 'की पहचान पहलुओं की
है कि मूल्यांकन पर जोर अवधि'
सतत 'मतलब है एक घटना के बजाय एक सतत प्रक्रिया है, कुल अध्यापन - अधिगम
प्रक्रिया में बनाया गया है और शैक्षिक सत्र की पूरी अवधि से अधिक फैल गया
है. इसका मतलब यह है
· मूल्यांकन की नियमितता
· इकाई परीक्षण की आवृत्ति
· सीखने के अंतराल के निदान
· सुधारात्मक उपायों का प्रयोग
· Retesting और
· उनके आत्म मूल्यांकन के लिए शिक्षकों और छात्रों के लिए सबूत
की प्रतिक्रिया.
दूसरे शब्द का अर्थ है 'व्यापक' है कि योजना के लिए दोनों शैक्षिक और छात्रों
के विकास और विकास के सह शैक्षिक पहलुओं को कवर करने का प्रयास है. अवधि
उपकरण और तकनीक (दोनों परीक्षण और गैर परीक्षण) के विभिन्न प्रकार के
आवेदन करने के लिए संदर्भित करता है और तरह सीखने के क्षेत्रों में एक
नौसिखिया के विकास का आकलन करना है
· ज्ञान
· समझौता बूझ /
· लागू
· का विश्लेषण
· का मूल्यांकन
· बनाना
योजना इस तरह एक पाठयक्रम पहल है, समग्र सीखने के लिए परीक्षण से जोर में बदलाव करने के प्रयास में है. यह अच्छा
ध्वनि स्वास्थ्य, उचित कौशल और अकादमिक उत्कृष्टता के अलावा वांछनीय गुण रखने नागरिकों बनाने में करना है. यह शिक्षार्थियों को लैस करने के
लिए एक खुशहाल वातावरण में जानने के लिए और आत्मविश्वास और सफलता के
साथ जीवन की चुनौतियों को पूरा करेंगे. स्कूल और माता पिता की आकांक्षाओं
के प्रतिस्पर्धी माहौल तनाव और चिंता के बच्चों पर एक भारी बोझ
जगह, उनके व्यक्तिगत विकास और विकास के स्टंट और सीखने की खुशी बाधित है.
सीसीई
'सीसीई' सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के लिए खड़ा है. 'सीसीई' में 'सतत' शब्द आवधिकता और
मूल्यांकन में नियमितता को संदर्भित करता है. शब्द 'व्यापक' दोनों बातों के
पाठयक्रम और सह पाठयक्रम योजना में
शिक्षार्थियों के समग्र मूल्यांकन करने
के लिए संदर्भित करता है.
सीसीई के कार्यान्वयन:
नए पैटर्न के अनुसार, FA1 और
FA3 (कलम और कागज परीक्षण)
विभाजन पाठ्यक्रम केवीएस प्रति के रूप
में आयोजित किया जा रहा है. आकलन की
समझ व पारम्परिक मूल्यांकन की प्रणाली
में परिवर्तन की आवश्यकता वर्तमान
समय में प्रदेश के विधालयों में
पारम्परिक मूल्यांकन की जो प्रणाली लागू
है,
उसके अन्तर्गत वार्षिक और अद्र्धवार्षिक
परीक्षा के अतिरिक्त सत्र के
मध्य में भी ली जाने वाली दो परीक्षाओं-
कुल मिलाकर चार लिखित परीक्षाओं के
माध्यम से मूल्यांकन का प्रावधान है।
वर्तमान मूल्यांकन प्रकि्रया पूरी
तरह से औपचारिक ताने-बाने में गुँथी
हुअी है। निशिचत अवधि के अंतराल पर
मौखिकलिखित परीक्षा के दिन तय किये जाते
हैं।
आर.टी.र्इ.-2009 और
एन.सी.एफ.-2005 में यह बार-बार कहा गया
है कि बच्चे के अनुभव को महत्व मिलना
चाहिए एवं उसकी गरिमा सुनिशिचत की
जानी चाहिए, परन्तु यह तब तक
पूर्णतया संभव नहीं है जब तक कि प्रचलित
मूल्यांकन पद्धति में परिवर्तन न किया
जाय। वर्तमान मूल्यांकन व्यवस्था में
किसी समय विशेष पर लिखित परीक्षा की
व्यवस्था है, जबकि छात्र का संवृद्धि
एवं विकास सम्पूर्ण सत्र में विकसित
होता है। इस तरह के मूल्यांकन से कुछ
बच्चों को असुरक्षा, तनाव, चिंता और अपमान जैसी
सिथतियों का सामना करना पड़ता है। सावधिक परीक्षाओं से यह तो पता चलता है कि बच्चे
कितना जानते हैं, पर यह नहीं पता चलता कि जो नहीं जानते उनके न जानने के क्या
कारण हैं। इस तरह का मूल्यांकन पाठय पुस्तकों में पढ़ार्इ गर्इ विषयवस्तु
और रटंत प्रणाली द्वारा प्राप्त की गर्इ जानकारीज्ञान का मूल्यांकन
करने तक ही सीमित है।
अधिकांशत:
यह बच्चों में तुलना करने जैसे भाव रखता
है और अवांछनीय प्रतिस्पर्धा को
जन्म देता है। वर्तमान व्यवस्था में
केवल बच्चे की अकादमिक प्रगति का
मूल्यांकन होता है, जबकि बच्चे के
सर्वांगीण विकास में अकादमिक प्रगति के
साथ-साथ उसकी अभिवृतितयों, अभिरुचियों, जीवन-कौशलों, मूल्यों तथा मनोवृतितयों में होने वाले परिवर्तनों का भी समान महत्व होता
है।
इस प्रकार की सिथतियां कुछ महत्वपूर्ण
सवालों की तरफ हमारा ध्यान खींचती हैं जैसे- हम किस चीज का मूल्यांकन कर रहे हैं? क्या टेस्टपरीक्षाओं के अतिरिक्त बच्चों का मूल्यांकन करने की कुछ
और विधियाँ भी हो सकती हैं? क्या अंकों और ग्रेड के रूप में रिपोर्ट करना पर्याप्त है? मूल्यांकन संबंधी
सूचनाएं किस तरह मदद करती हैं? हम अपने काम को कठिन बनाए बिना भिन्न-भिन्न
पृष्ठभूमि से आये, और विशेष आवश्यकताओंं वाले बच्चों के सीखने के बारे में
सूचनाएं किस प्रकार से इकटठी कर सकते हैं?
अब यह सर्वमान्य तथ्य है कि प्रत्येक बच्चे की प्रकृति एवं सीखने
की गति में भिन्नता होती है तथा वे अलग-अलग विधियों से सीखते हैं। हर
विषयवस्तु को सीखने-सिखाने की विधियाें में भिन्नता होने के कारण प्रत्येक
बच्चे की प्रस्तुति एवं अभिव्यकित भी पृथक एवं विशिष्ट होती है। अत: यह
आवश्यक है कि बच्चों का मूल्यांकन कागज-कलम परीक्षा के अतिरिक्त अन्य विधाओं
द्वारा भी किया जाये। अन्य विधाओं के प्रयोग से बच्चों की स्मृति क्षमता
के स्थान पर अन्य उच्चतर क्षमताओं यथा-अभिव्यकित, विश्लेषण, समस्या का समाधान एवं अनुप्रयोग आदि दक्षताओं का विकास संभव होगा। चूंकि प्रत्येक
बच्चे की प्रकृति विशिष्ट है और शिक्षण पद्धतियाँ भी भिन्न होती हैं, अत: एक समान मूल्यांकन पद्धति उपयुक्त नहीं हो सकती है।
इन तथ्यों को ध्यान में रखकर नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का
अधिकार अधिनियम-2009 में बच्चों के सीखने और उसे उपयोग करने की योग्यताओं का सतत एवं व्यापक मूल्यांकन करने का प्राविधान किया गया।
नि:शुल्क
और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार
अधिनियम-2009 की धारा 29 की उपधारा (2) के अनुसार मूल्यांकन प्रकि्रया में निम्नलिखित बिन्दुओं का
ध्यान रखा जाना आवश्यक है:-
(ख) - बच्चों का
सर्वांगीण विकास हो।
(घ) - शारीरिक और
मानसिक योग्यताओं का पूर्णतम मात्रा तक विकास हो।
(ज) - बच्चों के सीखने
की क्षमता, ज्ञान और उसके अनुप्रयोग की क्षमता का व्यापक और सतत मूल्यांकन
हो।
बच्चों
के मूल्यांकन की यह सतत एवं व्यापक
प्रकि्रया कोर्इ पृथक गतिविधि न होकर
सीखने-सिखाने की प्रकि्रया का अभिन्न, सतत और सारगर्भित अंग
होगी। बच्चे की प्रगति के लिए आवश्यक है कि मूल्यांकन की प्रकि्रया बाल
केनिद्रत हो, कक्षा में पायी जाने वाली विविधता को समझने वाली हो, आवश्यकता के अनुसार लचीली हो तथा हर बच्चे की आयु,
सीखने की गति, शैली और स्तर के
अनुसार चलने वाली हो।
यहाँ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ यह कदापि नहीं है कि बच्चों
की वार्षिक, अद्र्धवार्षिक और सत्र परीक्षाओं के अतिरिक्त मासिक, पाक्षिक या साप्ताहिक परीक्षाएं ली जाये। बच्चे के विकास का सतत मूल्यांकन एक सामयिक
घटना (सत्र परीक्षा या वार्षिक परीक्षा) नहीं होती वरन यह शैक्षणिक सत्र
की समूची अवधि में लगातार चलती है। दूसरी ओर व्यापक का आशय अकादमिक
प्रगति के स
साथ व्यापकता का तत्व समाहित किये बिना बच्चों के सर्वांगीण विकास
के लक्ष्य की प्रापित सम्भव नहीं है। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों के
शारीरिक विकास, नियमित उपसिथति,
खेलों तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में
सहभागिता, नेतृत्व
क्षमता,
सृजनात्मकता आदि व्यकितगत एवं सामाजिक
गुणों के क्रमिक विकास का
सतत मूल्यांकन किया जाता रहे।
''सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रकि्रया के द्वारा शिक्षण-अधिगम के समय
ही शिक्षक को छात्रों के सीखने की प्रगति और कठिनार्इयों के बारे में
निरन्तर जानकारी मिलती रहेगी। इस प्रकार की व्यवस्था में एक दीर्घ अन्तराल के
बाद चलाए जाने वाले उपचारात्मक शिक्षण की आवश्यकता भी समाप्त हो जायेगी, क्योंकि छात्र की कठिनार्इ का समय रहते निदान और उपचार हो सकेगा तथा
यथासमय ही कठिनाइयों का निवारण होने से छात्रों में आत्मविश्वास जाग्रत
होगा, सीखने
की प्रक्रिया सुगम होगी और छात्रों के
मन से परीक्षा विषयक भय और तनाव भी
दूर होगा। इस क्रम में शिक्षक और छात्र
के बीच जो संवाद और आत्मीयता के
संबंध विकसित होंगे, उनसे छात्रों की
उपसिथति में तो वृद्धि होगी ही साथ ही
साथ बीच में विधालय छोड़ जाने वाले ;कतवचवनजद्ध छात्रों
की संख्या में भी गिरावट आयेगी।
उपयर्ुक्त
चर्चा से यह स्पष्ट है कि वर्तमान
विधालयी शिक्षणमूल्यांकन व्यवस्था में
व्यापक व्यवस्थागत सुधारों की जरूरत है।
मूल्यांकन की प्रकि्रया कक्षाओं
में चल रही सीखने-सिखाने की ही एक
प्रक्रिया है एवं मूल्यांकन के वही तरीके
अच्छे होते हैं जो बच्चों के सीखने की
गति और सीखने के तरीकों के अनुरूप
होते हैं।